यहाँ पर यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि देश और समाज में व्याप्त गैर-बराबरी, भेदभाव, असमानता, नाइंसाफी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, मिलावट, जालसाजी, उत्पीड़न, शोषण आदि को जन्म देने और पनपाने वाली भ्रष्ट व्यवस्था के मूल में कौनसे बड़े कारण हैं! साथ ही ये बताने का प्रयास भी किया जायेगा कि इस भ्रष्ट व्यवस्था से एक व्यक्ति, परिवार, समाज और अंतत: हमारे राष्ट्र को कैसे बचाया जावे! इस विषय में इस संस्थान के नेतृत्व के लम्बे अनुभव तो यहाँ प्रस्तुत किये ही जायेंगे! इस राष्ट्रीय अभियान में इस संस्थान के सदस्यों और सभी सुधि पाठकों के सकारात्मक विचारों व सुझावों का भी स्वागत है! आप हमें हिन्दी भाषा में मेल कर सकते हैं! E-mail : baasoffice@gmail.com
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चर्चा में भाग ने वाले सभी मित्रों से विनम्र अनुरोध :
यहॉं प्रस्तुत सामग्री को पढने और उस पर अपनी टिप्पणी करने या अपनी राय प्रकट करने से पहले कृपया मूल संविधान के निम्न महत्वपूर्ण प्रावधानों को पढकर ठीक से समझ लें! जिनको संविधान का ज्ञान नहीं और, या जिनकी संविधान में आस्था नहीं, उन्हें चर्चा में शामिल होने से पूर्व सोचना चाहिए!
विधि (कानून-Law) का अर्थ : संविधान के भाग 3 (जिसमें नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लेख है) के अनुच्छेद 13 (3) में प्रावधान है कि जब तक विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया जायेगा, तब तक विधि (Law) का मतलब होगा-भारत में भू-भाग में कानून की ताकत रखने वाले अध्यादेश (ordinance), आदेश (order), उपविधि (bye-law), नियम (rule), विनियम (regulation), अधिसूचना (notification) के अतिरिक्त रूढि (custom)* और प्रथा (usage)* को भी विधि माना गया है| भारत के संविधान के लागू होने से पूर्व बनायी गयी ऐसी कोई विधि भी जो चाहे सम्पूर्ण भारत में लागू नहीं हो विधि मानी जायेगी|
संविधान लागू होने से पूर्व की विधियाँ शून्य (Void): संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 13 (1) में प्रावधान है कि संविधान लागू होने से पूर्व की भारत में लागू ऐसी सभी विधियॉं उस सीमा तक शून्य होंगी, जिस सीमा तक वे संविधान के भाग 3 में वर्णित प्रावधानों से असंगत होंगी| अर्थात् संविधान के भाग तीन के प्रावधानों के विरुद्ध विधि का प्रभाव रखने वाली संविधान लागू होने से पूर्व बनायी गयी सभी विधियॉं स्वत: शून्य हो जायेंगी|
संविधान लागू होने से बाद बनायी असंवैधानिक विधियाँ भी शून्य (Void) : संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 13 (2) में प्रावधान है कि संविधान लागू होने के बाद संविधान के भाग 3 में वर्णित मूल अधिकारों को छीनने या कम करने वाली कोई विधि नहीं बनाई जायेगी और यदि बनाई जाती है या लागू की जाती है तो ऐसी विधि उस सीमा तक शून्य होगी, जिस सीमा तक वह मूल अधिकारों को छीनेगी या कम करेगी या मूल अधिकारों का उल्लंघन करेगी|
संविधान की आत्मा : मेरी नज़र में संविधान के अनुच्छेद 13 के उक्त प्रावधान हमारे संविधान की आत्मा हैं! यदि इन प्रावधानों को हटा दिया जाये तो सरकार तथा प्रशासन को कानूनी तौर पर तानाशाह बनने से कोई नहीं रोक सकता!-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
*(इसमें जातिगत, सामाजिक या धार्मिक रूढियॉं एवं प्रथाएँ शामिल हैं)
प्रथा : मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया के अनुसार "ऐसा चलन या रिवाज जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नही होता, वह केवल धर्म या परम्परओं की आड़ में धर्म के कथित ठेकेदारों द्वारा समाज एवं समाज के लोगों पर थोप दी जाती हैं। प्रथाओं का पालन ना करने वालों को जाति या धर्म से बाहर कर दिया जाता है|"